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संवाददाता। लखनऊ
-सनातन संस्कृति की मजबूत मिसाल - पूज्यश्री प्रेमभूषण जी महाराज
संवाददाता।
लखनऊ सेवा,सहायता,सहयोग एवं लोक कल्याण के क्षेत्र में अविस्मरणीय कार्य कर रही ,नरसेवा नारायण सेवा का पर्याय ममता चैरिटेबल ट्रस्ट ने सशक्त भारत,सशक्त प्रदेश व सशक्त लख़नऊ बनाने की दिशा में एक अद्भुत कदम उठाते हुए प्रत्येक वर्ष आध्यात्मिक चेतना समागम के अंतर्गत श्रीराम कथा अमृत वर्षा का आयोजन करती आ रही है! श्रीराम कथा अमृत वर्षा महोत्सव में उमड़ा भक्तों का जैन-सैलाब तथा समर्पण भक्ति भाव देखकर सनातनी संस्कृति कितनी मजबूत है सहज ही आभास किया जा सकता है ,हम मजबूत होगे तो भारत को सोने की चिड़िया और विश्वगुरु बनने से कोई रोक नहीं पाएगा,अपने राघव सरकार हमेशा हमारे साथ है!
सनातन धर्म और संस्कृति में मर्यादा और अनुशासन का बहुत ही महत्व है। श्री रामचरितमानस जी में स्वयं भगवान राम जी ने कहा है -सोई सेवक प्रियतम मम् सोई। मम अनुशासन माने जोई।।
परंतु समस्या यह है कि अगर लोग अनुशासन मानने लगे तो फिर उनके अहंकार का क्या होगा। खासकर सक्षम व्यक्ति अपने अहंकार की रक्षा में कई बार अनुशासन भंग करते हैं और फिर नीचे वाले उन्हीं का अनुकरण करते हैं।
सरस् श्रीराम कथा गायन के लिए सर्वप्रिय प्रेममूर्ति पूज्य श्री प्रेमभूषण जी महाराज ने उक्त बातें लखनऊ के गोमती नगर विस्तार स्थित सीएमएस विद्यालय के मैदान में ममता चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा आयोजित नौ दिवसीय श्रीराम कथा के पांचवें दिन व्यासपीठ से कथा वाचन करते हुए कहीं।
श्री रामकथा गायन के माध्यम से भारतीय और पूरी दुनिया के सनातन समाज में अलख जगाने के लिए जनप्रिय कथावाचक प्रेमभूषण जी महाराज ने धनुष यज्ञ और अन्य प्रसंगों का गायन करने के क्रम में कहा कि भगवान श्री राम को हम मर्यादा पुरुषोत्तम कहते हैं। भगवान स्वयं मर्यादा में रहते हैं और लोगों से भी मर्यादा का पालन करने की अपेक्षा करते हैं। अनुशासन में रहने वाले लोग ही भगवान को प्रिय भी हैं।
जनक जी की बगिया में पुष्प उतारने के लिए भी भगवान ने मालीगण से आज्ञा ली।
महाराज श्री ने कहा कि भगवान को दास भाव में रहने वाले भगत ज्यादा प्रिय हैं। भगत सेवा करते हैं, परंतु सेवा करने वालों की अपनी कुछ चाहत भी होती है लेकिन दास का सब कुछ स्वामी ही होता है। दास की अपनी कोई इच्छा भी नहीं होती है। स्वामी के प्रति पूर्ण समर्पण ही दास भाव है। दास बनना सहज नहीं है, बहुत कठिन है यह। पिता के कहने के बाद भी अंगद, प्रभु के दास नहीं बन सके। दूसरी तरफ हनुमान जी ने अपने को पूरी तरह प्रभु को समर्पित करके वह पद प्राप्त कर लिया।
पूज्य श्री ने कहा कि किसी भी कुल में भगत का जन्म तपस्या से ही होता है। मनुष्य का जीवन तप करने के लिए मिला है तप के माध्यम से ही हम अपने धरती पर आने के उद्देश्य को पूरा कर सकते हैं। गंगा जी को धरती पर लाने के लिए राजा भगीरथ की चार पीढ़ियों ने तप किया था। जिस कुल में कोई भगत तपता है, उसी कुल में नए भगत का आगमन भी होता है।
भगत की बुद्धि लेनदेन या बनिया की तरह नहीं होती है। क्या दिया तो क्या पाया ? यह भगत नहीं सोचता है। भगवान के चरणों में भगत की सहज ही गति होती है। यह पूरी सृष्टि भगवान के वश में है मनुष्य के वश में कुछ भी नहीं है। जब भगवान से ही सब कुछ मिलना है तो भगवान में ही लगना चाहिए। घर में हम अगर अर्चा विग्रह की सेवा करते हैं, जीव भाव से करते हैं तो विग्रह भी बोलने लगते हैं। अगर हम घर में छोटे बच्चों से बात ना करें तो वह भी नहीं बोल पाते हैं इसलिए घर में अगर लाल को रखा है तो उनसे जीव भाव रखते हुए उनसे बात करें, उनकी सेवा करें।
सनातन धर्म, सत्य आचरण के समाज के निर्माण पर ही आधारित है। यह प्रमाणित सत्य है कि सतकर्म में रहने वाले व्यक्ति के लिए संसार की हर वस्तु सुलभ होती है । ठीक इसी प्रकार से अगर राजा धर्मशील हो तो प्रकृति भी उसके प्रजा पालन में उसका पूरा-पूरा साथ देती है। धरती एक मुट्ठी अन्न को सौगुना करके वापस करती है।
मिथिलेश की वाटिका में भगवान राम के स्वागत में पूरी प्रकृति उमड़ पड़ी थी। ठीक है इसी प्रकार से त्रेता में जहाँ भी राजा धर्मशील होते थे, समुद्र देव उनके स्वागत में अपने गर्भ से खजाने को लाकर तट पर बिखेर देते थे।
भारतीय सनातन संस्कृति में यह बार-बार प्रमाणित हुआ है कि जो भी व्यक्ति धर्म पथ पर चलते हुए संसार में विचरण करते हैं, उनके घर से दुख भी दूरी बना कर रहता है और ऐश्वर्य स्वयं चलकर उनके घर पहुंचते हैं।
पूज्य श्री ने कहा कि सनातन धर्म और संस्कृति में भगवान राम जी का चरित्र हमें बार-बार यह सिखाता है कि हमें जीवन में किस प्रकार रहना है। जब हम राजा जनक जी की वाटिका के प्रसंग का दर्शन करते हैं जहां भगवान श्री राम और माता सीता जी को एक दूसरे का पहली बार दर्शन हुआ था तो हमें यह पता चलता है कि शीलवान व्यक्ति कैसा होता है?
महाराज श्री ने कहा कि संसार में अच्छा बुरा दोनों ही उपस्थित है जो भगत लोग हैं उन्हें अच्छे को ग्रहण करते हुए अपने जीवन को धन्य बनाने की आवश्यकता होती है। अपनी दृष्टि पर संयम से यह संभव हो पाता है। जब हम अच्छा देखने का प्रयास करते हैं तो हमें सब कुछ अच्छा ही देखता है जैसे युधिष्ठिर को ढूंढने पर भी कोई बुरा व्यक्ति नहीं मिला लेकिन उसी जगह पर दुर्योधन को ढूंढने पर कोई एक भी अच्छा व्यक्ति नहीं मिला। हमें अपने भलाई के लिए अच्छा देखने का अभ्यास करने की आवश्यकता होती है। क्योंकि हम जो देखते हैं वही सोचते हैं और धीरे-धीरे वैसा ही बन जाते हैं।
जीवन में हमें किसी के साथ ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहिए कि वो आपसे परेशान हो जाए। जितना हो सके जीवन को सरल और सहज बनाना चाहिए। सहजता ही ईश्वर की सर्वोपरि भक्ति है।
पूज्यश्री ने कहा कि राम और रावण की एक ही राशि थी। रावण ने ब्राह्मण कुल में जन्म लिया था और भगवान राम क्षत्रिय कुल में जन्मे थे। कुल तो रावण का श्रेष्ठ था लेकिन, जब हम दोनों के व्यवहार की बात करते हैं, आचरण की बात करते हैं, आहार और विहार की बात करते हैं तो राम जी हर मामले में रावण से श्रेष्ठ थे।
समाज में आम लोग श्रेष्ठ के ही आचरण का अनुकरण और अनुसरण करते हैं ऐसे में सभी श्रेष्ठ व्यक्तियों के लिए यह आवश्यक है कि वह अपने आचार, व्यवहार, आहार में श्रेष्ठता का प्रदर्शन करें, जिनका अनुकरण किया जा सके।
महाराज जी ने कहा कि मनुष्य को किसी के भी अपकर्मों की चर्चा करने से बचना चाहिए। जब हम किसी के किए गए गलत कार्यों की बार-बार चर्चा करते हैं तो उस
तरह की स्थिति हमारे अपने जीवन में भी उपस्थित होने लगती है।
महाराज श्री ने बताया आम जन जीवन में कहां उठना बैठना है, कहां नहीं जाना है, क्या खाना है? क्या नहीं खाना है । किससे कुछ लेना है और किससे कुछ नहीं लेना है आदि-आदि यही तो धर्म है। जब कोई व्यक्ति धर्म को धारण कर धर्मशीलता के जीवन को जीने का प्रयास करता है तो भगवान भी उसकी मदद करते हैं।
पूज्य महाराज श्री ने कहा कि भारतीय सनातन परंपरा में माताओं को सबसे ऊंचा स्थान दिया गया है। यहां तक कि जब भगवान का भी हम पूजन करते हैं
तो सबसे पहले भगवान को त्वमेव माता कहते हैं। माताओं ने सनातन संस्कृति को जीवंत बना रखा है।
भगवान श्री राम की मिथिला यात्रा और धनुषभंग के प्रसंगों का गायन करते हुए पूज्य महाराज जी ने कहा कि हम जिस युग में जी रहे हैं उस काल में दान ही सर्वश्रेष्ठ धर्म कार्य है। भगवान ने हमें कुछ देने के लिए ही दिया है । हम जो देते हैं , हमें वही वापस और ज्यादा मिलता है जैसे अगर हम धरती में एक मुट्ठी अन्न डालते हैं तो धरती माता हमें उसे 100 गुना करके देती हैं।
धनुष भंग प्रसंग का श्रवण करने के लिय गुरुवार को बड़ी संख्या में उपस्थित श्रोतागण को महाराज जी के द्वारा गाए गए दर्जनों भजनों पर झूमते हुए देखा गया।
श्रीराम कथा का शुभारम्भ 11 नवयुवकों से दीप प्रज्वलित करके किया गया,गणेश वन्दन,श्री रामायण जी की आरती के साथ कथा प्रारम्भ हुई!आज के इस महोत्सव में मा.वित्त मंत्री सुरेश खन्ना,विधान परिषद सदस्य मुकेश शर्मा,वरिष्ठ आईएएस अधिकारी देवेन्द्र पांडे, सीनियर डॉक्टर प्रोफेसर आनंद मिश्रा,डॉ विवेक तागड़ी, राजीव गोयल, प्रोफेसर ,ए .के. टी .यू. लखनऊ,डॉ सुयश नारायण मिश्रा उपस्थित होकर राम रसपान किया और महराज जी से आशीर्वाद प्राप्त किया। ममता परिवार के मुखिया एवं भाजपा क्षेत्रीय उपाध्यक्ष राजीव मिश्रा ने अतिथियों का मोमेंटो और दुशाला भेंटकर सम्मान अभिवादन किया।
बड़ी संख्या में विशिष्ट जन और हज़ारों की संख्या में भक्तजन उपस्थित रहे।
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