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लखनऊ। भारत में पूर्णिमा का अति महत्वपूर्ण स्थान है। इस दिन को श्रद्धालु बड़ी श्रद्धा तथा विश्वास के साथ मनाते हैं। पूर्णिमा का दिन इसलिए भी हमारे लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि पूर्णिमा के दिन सन्तों का जन्म हुआ। कार्तिक पूर्णिमा के दिन सुदर्शन ऋषि (इनको त्रीपिटकों में पच्चेक बुद्ध कहा गया है) का जन्म एवं इसी दिन गुरू नानक का जन्म, माघी पूर्णिमा के दिन सन्त रैदास का जन्म ज्येष्ठ की पूर्णिमा को सन्त कबीर का जन्म तथा वैशाख पूर्णिमा के दिन लुम्बिनी, शाल वन में सिद्धार्थ गौतम का जन्म, इस दिन सिद्धार्थ गौतम का जन्म ही नहीं हुआ बल्कि बोध गया में सम्बोधि (ज्ञान) प्राप्त करने के बाद, सिद्धार्थ से सम्यक सम्बुद्ध हुए और इसी दिन महापरिनिर्माण को प्राप्त हुए।
सारनाथ वह स्थान है, जहाँ तथागत बुद्ध ने कार्तिक पूर्णीमा के दिन बहुजनों यानी विश्वभर में मानवों के कल्याण के लिए, लाभ के लिए तथा सुख के लिए कार्तिक पूर्णिमा के दिन साठ अर्हत भिक्खुओं से कहा-भिक्खुओं! देवताओं और मानवों के सुख के लिए तथा लाभ के लिए एक स्थान पर मत रहो, सभी दिशाओं में यानी चारों ओर जाओ, अभिधम्म की दीक्षा दो। जो आरम्भ में कल्याणकारी हो, मध्य में कल्याणकारी हो तथा अन्त में भी कल्याणकारी हो।
संघदान पूर्णिमा (कार्तिक पूर्णिमा) भारत में ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व में पर्व के रूप में बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनायी जाती है। इस दिन बौद्धों के अलावा अन्य धर्मो के लोग मन्दिरों को सजाने के साथ ही बौद्ध सुत्लों का संगायन भी करते है। इस दिन का एक विशेष महत्व यह भी है कि संघदान पूर्णिमा के दिन महोपासिका विशाखा द्वारा एक रात में अपने हाथ से बनाया हुआ चीवर बुद्ध एवं उनके संघ को दान किया था। इसलिए इस दिन को कठिन चीवर दान के नाम से भी जाना जाता है। बौद्ध देशों में इस दिन को विशाखा दिवस (Vassak Day) के रूप मनाया जाता है। बुद्ध के धम्म को अकालिको अर्थात तुरन्त फलदायी देने वाला कहा गया है। इस दिन को बड़े ही आदर और सत्कार के साथ मनाने और उपोसथ (व्रत) रखने के साथ ही बौद्ध होता है बल्कि घर में बुद्ध प्रकाश के समृधी लाती है।
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